पारद शिवलिंग

शिव का नाम लेते ही आस्तिक के मन में एक शक्तिमय स्वरूप का विम्ब परिलक्षित होता है। शिव की महिमा का गान तो अनन्त है। इसका न आदि ज्ञात है न अन्त ज्ञात हो सकता है। बस ये एक दिव्य फल है, जिसने इसका स्वाद पाया वो संसार सागर से तर गया यह नाम भौतिक आध्यात्मिकादि समस्त तापों से झटित त्राण देने वाला है।
महिम्न स्रोत में पुष्प दन्त महिमा गाते हुए थक कर कहते है –
असितगिरि समं स्यात कन्जलं सिन्धुपात्रे, सुरतरुवरशाखा लेखनी पत्रमुव।
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं, तदपि तवगुणानाम् ईश पारं न याति।।
यदि सुमेरु पहाड सा कालिख का भण्डार हो और उसको समुद्र में डालकर स्याही बनाया जाये और देवताओं के सर्वश्रेष्ठ वृक्ष कल्पवृक्ष की शाख को लेखनी बनाकर पूरी पृथ्वी को कागज बनाया जाये और सरस्वती हमेशा इन उपकरणों से शिव के गुणों की महिमा को लिखती रहे तब भी हे शिव आपके गुणों का अन्त नहीं हो पायेगा। आपकी पूर्ण महिमा को नही जाना जा सकेगा।
ऐसे शिव को जब हम नही समझ पाते तो पूर्ण ज्ञान स्वरूप गुरु में उनको पूज्य भाव से सहòार पर विराजित कर कहते है।
यो गुरुः स शिवः प्रोक्तो यः शिवः स गुरुः स्मृतः
उभयोन्तरं नास्ति गुरोरपि शिवस्य च।
जो गुरु है वही शिव है, जो शिव है वही गुरु है। इन दोनों में कोई अन्तर नही। शिव और गुरु एक ही है। ऐसे महामहिमाशाली शिव के पूजन पर अनेक ग्रन्थ, पद्यतियां एवं शास्त्र रचित हुए, अनेकों देवों ने शिव को अनेकों रुपों में उपास्य बनाया और उपासकत्व गौरवलब्ध जगतप्रतिष्ठ हुए। श्री विद्यार्णव में शिव के 16 प्रकार के लिंगो का वर्णन आया है, जिसमें तांबा, शीशा, लोहा, सोना, चांदी, रत्नमय आदि का वर्णन है। उनमें से ही एक सर्वश्रेष्ठ लिंग है रसलिंग। रस के शास्त्रों में अनेको नाम है। सामान्य भाषा में इसको पारद लिंग भी कहते है।
सामान्य स्थूल बुधिसूक्ष्म निरजंन निराकार शिव तत्व को ग्रहण करने में सक्षम नही होती अतः प्रत्येक सम्प्रदाय में प्रथमावस्था में साधक प्रकृति सम्ब( लिंग का अर्चन करते है। इसी को ध्यान कर तपोमूत वीतरागश्रेष्ठ ब्रह्मलीन स्वामी लक्ष्येश्वराश्रम जी महाराज ने सामान्य जन के स्थूल चित्तवृत्ति का ध्यान कर शास्त्रावगाहन कर इस लिंग निर्माण विधि को पुनः जीवित किया और शास्त्रोक्त वचन –
“लिंग कोटी सहस्त्रास्य यत्फलं सम्यगर्चनात्।
तत्फलात्कोटीगुणितं रसलिंगार्चनाद् भवेद्”
”अनेकों प्रकार के हजारो लिंगो का विधिपूर्वक पूजन करने से जो फल उत्पन्न होता है उस फल के करोड़ो गुना फल पारद शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है“ को सामान्य जन के लिए सुलभ किया।
स्वामी जी ने अपने परामोपास्य के व्यक्त गुढतत्व के साक्षात्कारोपरान्त भी सर्वजन सुखाय भूभार रुप हम अज्ञानी जनों के लिए व्यक्त रूप में शोधन कर ईशावस्यमिदं सर्वं की सूक्ति को सि( कर प्रत्यक्ष में हमारे समक्ष रख दिया। यह विधि अत्यन्त गूढ़ और श्रमसाध्य है जिसका अनेकों आधुनिक रसायनविद केमिस्टद्ध और शोधकर्ता खोज कर रहे है। फिर भी द्रव को बिना किसी दाब या ताप के धनीभूत ठोस अवस्था में परिव£तत नही कर पा रहे है। पारा ही वह धातु है जो द्रव अवस्था में प्राप्त होता है और तापमान के घटने-बढ़ने का सर्वोंत्तम संकेतक हैै। आज भी विज्ञान तापमान के आंकडे़ जुटाने के लिए इसी रसराज को थर्मामीटर आदि उपकरणों में डालकर प्रयोग कर रहा है। परन्तु ब्रह्मलीन स्वामी लक्ष्येश्वराश्रम जी महाराज ने इस धनीभूत कर आधुनिक विज्ञान को उसके लघुता का प्रमाण दिया और हमारे वैदिक विज्ञान की विजय पताका को सर्वोंच्च शिखर पर स्थापित किया है।
भूमा निकेतन, हरिद्वार में माता राजराजेश्वरी के सिहांसन के सम्मुख दिव्यपीठ पर विराजमान पारद शिवलिंग कामेश्वर और कामेश्वरी अथवा प्रकृति और पुरुष के अनुपम संयोग को दर्शाते हुए स्थित है।
पराप्रासाद दीक्षा च, पारदेश्वर पूजनम्।
महिम्नः स्तुतिपाठश्च, नाल्पस्य तपसः फलम्।।
पराप्रासादमन्त्रेण, रसलिंग समर्चयेत्।
षणमासाभयन्तरेणैव, सर्वशिवरोभवेत्।। – श्री विद्यार्णव तन्त्रद्ध
इस पारदेश्वर शिव की पूजा से पराप्रासाददीक्षा की प्राप्ति होती है। उनकी महिमा की स्तुति पाठ से अल्पतपस्या का फल नहीं मिलता प्रत्युत् जो फल कठिन तप से प्राप्त होता है वह फल मिलता है इसलिये साधक को उपर्युक्त पराप्रासाददीक्षा मन्त्र से पारदलिंग की अर्चन-पूजन करना चाहिये। इस पूजन से छः मास के अन्दर ही सभी प्रकार की सिद्धियों के अधिपति पद की प्राप्ति हो जाती है।
जो शिवलिंग करोड़ों गुना अधिक फल देने वाला है ऐसे शिवलिंग का दर्शन पूजन कर हमने यदि अपना जीवन कृतार्थ नहीं किया तो हमने हाथ आये अमृत को भूमि पर बिखेरने जैसा भीषण कृत्य कर अपने आत्मबोध का अवसर गवां दिया।
भगवान भोलेनाथ आप सबका कल्याण करेें।
।। ऊँ नमः शिवायः ।।

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