माता श्री राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी मंदिर माता राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी परिचय।

ब्रह्मण्ड को भण्ड नाम के असुर के त्रास से मुक्ति देने के लिए महायागानलोत्पन्ना श्री माता राजराजेश्वरी ललिता परमेश्वरी का प्रादूर्भव हुआ ऐसी कथा ब्रह्मण्ड पुराण के उत्तर भाग के इक्तीसवें अध्याय में आयी है। ब्रह्मर्षी अगस्त्य जी के पूछने पर हयग्रवी भगवान कहते है –

“यथा चक्ररथं प्राप्य पूर्वोक्तैर्लक्षणैयुर्तम्।
महायागान्लोत्पनन्ना ललिता परमेश्वरी।।
कृत्वा वैवाहिकीं लीलां ब्रह्माद्यैः प्रार्थिता पुनः।
व्यजेष्ठ भण्डनामानमसुरं लोककण्टकम्।।
तदा देवा महेन्द्राद्याः सन्तोष बहु मेजिरे।।”
माता ललिता के विहार करने के लिए विश्वकर्मा ने अद्भुद प्रासाद की रचना की थी। श्रीपुर नवकूट परिवृत है जहाँ बिन्दुमण्डल मध्यवासिनी का मुख्य स्थान है। भगवती को पचप्रेतासनासीना भी कहा गया है। जो भगवती के व्यापकता व अक्षुण्ण सत्ता का भी बोधक है। महाराज्ञी विष्णु, ब्रह्मा एवं शिव के भी न रहने पर स्थित होकर अपने प्रेयस कामेश्वर की आराधना व विहार करती है। ऐसी भागवती को अनेको देवों ने पूजा, ईष्ट बनाया और अलभ्य पदार्थों की, पदों की प्राप्ति की जैसे-विष्णु, चन्द्र, कुबेर, मनु, लोपामुद्रा, अगस्त्य, नन्दिकेश्वर, इन्द्र, सूर्य, शंकर एवं दुर्वासा आदि।
अन्य भी अनेकों उपसकों ने इशित्वादि अष्टसिद्धियों को प्राप्त करने के लिए मोक्ष, ज्ञान, धन आदिकों की प्राप्ति के लिए कामदुधा त्रिपुरसुन्दरी की उपासना की है।
माँ ललिता को ही लम्बोदरप्रसू भी कहा गया है जिसका भाष्य करते हुए शंकराचार्य भगवान ने कहा है- “लम्बोदरस्य महागणेशस्य प्रसूः जनयित्री मातेत्यर्थः, लम्बोदरं प्रसूत इति वा”, विघ्नहर्ता की जननी यही जगत्जननी है।।
ऐसी माता की उपासना पूज्य यतिवर्य कल्पशास्त्र विशारद स्वामी श्री भूमानन्द तीर्थ जी महाराज भी नित्य किया करते थे और माता की उपासना हेतु अन्यान्य पिपासुओं को भी प्रेरित किया करते थे। स्वामी जी ने अपने दण्ड में ही माँ ललिता का न्यास कर रखा था माँ ललिताम्बा के स्तोत्रों को पाठ करते-करते स्वामी जी विह्वल होकर अश्रुपूरित गदगद वक्त्र हो जाते थे। स्वामी जी के ही मुखारविन्दों ने अपने शिष्यों को सर्वदा “हरिणेक्षणा“ को उपास्य बनाने को कहा। स्वामी जी कहते थे “सर्वत्र सर्वदा सर्वदृष्टीति हरिणेक्षणा” स्वामीश्री भूमानन्द तीर्थ जी ने अपने सर्वाधिक वैराग्य युक्त शिष्य स्वामीश्री अच्युतानन्द तीर्थ जी को अपने करकमलों से पूजित प्रतिष्ठित श्री शिवशक्ति के परमरूप को आराध्या बनाने का आदेश दिया, जिसका आज भी वे पालन कर रहे है।
आश्रम में अनेकों भक्तगणों में से एक श्री सुभाष गोयनका जी, हिसार वाले के पूज्य दादा जी स्व0 श्री जगन्नाथ प्रसाद गोयनका जी, मठ में ही रहते थे। एक बार उन्होने अपने कष्टों के निवारण के लिए प्रार्थना की, तो गुरुदेव भगवान ने उन्हे माँ राजराजेश्वरी की मूर्ति पूजा का आदेश दिया, जिसे मानकर सन्-1985 में उन्होंने भूमा निकेतन, हरिद्वार में माँ भगवती के पंचप्रेतासनासीना रुप की प्रतिष्ठा करवाने का प्रण किया और अनेको सहस्त्र मुद्रायें खर्च कर इस कार्य को सम्पादित भी किया। जगन्नाथ प्रसाद गोयनका को सन् 1981 से पहले कोई नही जानता था। व्यापार शून्य के बराबर ही था। सन् 1986 के अन्त में माता की मूर्ति स्थापना के बाद इनको रूस में चावल सप्लाई का टेन्डर मिला, जिसे करने के बाद गुरुदेव और माता ललिता के कृपा प्रसाद से ये परिवार आज विश्वविश्रुत है। जी.टी.वी. और एक्सल वल्र्ड जैसी इनकी संस्थायें करोड़ो का मुनाफा कर रही है।
वर्तमान में भूमा निकेतन की मुख्याराध्या पराम्बा के प्रीत्यर्थ आश्रम में त्रिकाल त्रिशती का पाठ व हवन, शुद्ध वैदिक रीति से नित्य होता है। प्रधान अर्चक दिव्य भोगों का नैवेद्य पूर्ण शुद्धता से नित्य महाराजश्री भूमानन्द जी की आज्ञा से माँ भगवती को अर्पित करते है। भक्तजनों की मान्यता है कि आश्रम की सिद्धीदात्री माँ राजराजेश्वरी में ही गुरुदेव स्वामी श्री भूमानन्द जी का वास है और माँ का पूजन करने से नित्य गुरुदेव ही पूजित होकर हमें भवसागर से त्राण देने की महती कृपा कर रहें है।
कुछ पुराने आश्रम वासियों ने बताया कि स्वामी श्री भूमानन्द जी के महानिर्वाण पर एक वर्ष तक आश्रम की सिद्धिदात्री की माला कुंभलाई रहती थी, ऐसा उपास्य और उपासक का आत्यन्तिक सम्बन्ध विरल ही है।
आश्रम में आकर माता जी के दर्शन का लाभ उठायें।
अद्भुत मन्दिर, हरिपुर कलां में 5000 व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था के लिये एक सुसज्जित सभागार उपलब्ध है। इस हाॅल को कीर्तन, श्रीमद् भागवत कथाओं, धार्मिक आयोजन एवं सभाओं के लिये उपयोग किया जा सकता है। इसमें कोई शुल्क निर्धारित नही है। इसकी व्यवस्था स्वेच्छा से दिये गये धन से संचालित होती है। यहाँ पर होने वाले आयोजनों के लिये आवश्यकतानुसार सात्विक भोजन की व्यवस्था है।
सभागार के साथ आगन्तुको के ठहरने की भी समुचित व्यवस्था है, जिसे भी स्वेच्छा से दी गई धनराशि से चलाया जाता है, साधना के इच्छुक, साधना व ध्यान के लिये लम्बे समय तक प्रवास कर सकते है। यह व्यवस्था भी स्वेच्छा से दी गई धनराशि से संचालित है।
गम्भीर बीमारियों के लिये संस्था के पीठाधीश्वर स्वामी जी स्वयं परामर्श देकर आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के समायोजन का सहयोग प्रदान करते है।
जन साधारण की प्रत्येक समस्या का योग, साधना, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा एवं ज्योतिष के माध्यम से समाधान का प्रयास किया जाता है।
इस संस्थान में आयुर्वेद, अध्यात्म, तन्त्र-मन्त्र आदि की दुर्लभ पुस्तकें उपलब्ध है। पूर्व सूचना के बाद उपरोक्त दुर्लभ पुस्तकें उसी स्थान पर अवलोकनार्थ उपलब्ध हो सकेगी।

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