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पारद शिवलिंग शिव का नाम लेते ही आस्तिक के मन में एक शक्तिमय स्वरूप का विम्ब परिलक्षित होता है। शिव की महिमा का गान तो अनन्त है। इसका न आदि ज्ञात है न अन्त ज्ञात हो सकता है। बस ये एक दिव्य फल है, जिसने इसका स्वाद पाया वो संसार सागर से तर गया यह नाम भौतिक आध्यात्मिकादि समस्त तापों से झटित त्राण देने वाला है। महिम्न स्रोत में पुष्प दन्त महिमा गाते हुए थक कर कहते है – असितगिरि समं स्यात कन्जलं सिन्धुपात्रे, सुरतरुवरशाखा लेखनी पत्रमुव। लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं, तदपि तवगुणानाम् ईश पारं न याति।। यदि सुमेरु पहाड सा कालिख का भण्डार हो और उसको समुद्र में डालकर स्याही बनाया जाये और देवताओं के सर्वश्रेष्ठ वृक्ष कल्पवृक्ष की शाख को लेखनी बनाकर पूरी पृथ्वी को कागज बनाया जाये और सरस्वती हमेशा इन उपकरणों से शिव के गुणों की महिमा को लिखती रहे तब भी हे शिव आपके गुणों का अन्त नहीं हो पायेगा। आपकी पूर्ण महिमा को नही जाना जा सकेगा। ऐसे शिव को जब हम नही समझ पाते तो पूर्ण ज्ञान स्वरूप गुरु में उनको पूज्य भाव से सहòार पर विराजित कर कहते है। यो गुरुः स शिवः प्रोक्तो यः शिवः स गुरुः स

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